Thursday, August 4, 2011

रोजा(व्रत)को महत्वः-


रोजा(व्रत)को महत्वः-

रोजा(व्रत)को महत्वः-


रोजा एक उपसना होअल्लाहको रसूलमुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भन्नुहुन्छ,- “जसले ईमान र पुण्यको लागिरोजा(ब्रत) राख्दछ उसको प्रत्येक पछिल्लो पापहरु क्षमा गरिन्छ” । (मुस्नदअहमद)
एक अर्को ठाउँमा अल्लाहको रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमभन्नुहुन्छअल्लाह तआलाको भनाई छ,- “आदमको सन्तानलाई उसको पुण्यको बदलामादस गुना देखि लिएर सात सौ गुनासम्म पुण्य मिल्दछ तर रोजा यो भन्दा फरक छकिनकिरोजा मेरो लागि हो र म नै यसको बदला दिन्छु । मेरो भक्तले आफ्नो ईच्छासम्भोग रखानपिनलाई केवल मेरो लागि छोडेको हुन्छ र रोजादरलाई खुशी दुई अवसरमा हुन्छएकइफ्तारको समयदोश्रो अल्लाहसँग भेटको समय र रोजादारको मुखबाट निस्केको गन्ध अल्लाहतआलाको लागि सुगन्ध भन्दा धेरै प्रिय हुन्छ। (मुस्लिम)
रोजादारलाईअर्को फाइदा छ त्यो हो अल्लाह तआलाले स्वर्गमा एक ढोका तयार गरेको छ जुन ढोकाबाटरोजादार मात्र प्रवेश गर्न पाउँछन् । हदीसमा छ- “जन्नत(स्वर्ग)मा आठ ढोकाछन् त्यसमा एउटाको नाम रय्यान ’ होत्यसमा रोजादार व्यक्ति मात्रै प्रवेशगर्नेछन्। (बुख़ारीमुस्लिम)
सहरी (विहानको खाना)खानेः-रातको अन्तिम प्रहरमा सहरी(विहान फजरको आजान भन्दा पहिलेको खाना)खाएमा स्वास्थ्य वृद्धी हुन्छ । अल्लाहको रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही व सल्लमलेभन्नुभयो-सहरी खाने गर्नु किनकि सहरी खानु उत्तम हो  (बुखारीमुस्लिम)
एक अर्को ठाउँमा अल्लाहको रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लमलेभन्नु भएको छ-सहरी खाएमा स्वास्थ्यमा वृद्धी हुन्छयसैले तिमी त्यसलाईनछोड चाहे तिमीहरु मध्ये कोही पनि व्यक्ति पानीको एक घुटको भएपनि पिउनुकिनकिअल्लाह र उसको फरिश्ता सहरी खानेवाला व्यक्तिको लागि सकुसलता प्रदान गर्नु हुन्छ ” (मुस्नद अहमद)
इफ्तार गर्नेः- मग्रिबको आजान हुना साथ इफ्तार गर्नुसुन्नत(मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही व सल्लमको तरिका) हो।अल्लाहको रसूल मुहम्मदसल्लल्लाहु अलैही व सल्लमले भन्नु भएको छ-इफ्तार(ब्रत समाप्त) गर्नुभन्दा केही पहिले देखि अल्लाहको खुब प्रार्थना गर्नु किनकि त्यस समय दुआ स्वीकारहुने समय हो
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही व सल्लमले भन्नु भएकोछ- “तीन व्यक्तिको प्रार्थना रद्द हुँदैनरोजादार (ब्रतालु) व्यक्तिकोप्रार्थना यहाँसम्म कि इफ्तार((ब्रत समाप्त) गर्ने समयसम्मन्यायवान शासक र पीडितव्यक्ति (अहमद)
इफ्तार(ब्रत समाप्त) गर्ने बेला यो दुआ पढ्नु पर्छ-अल्लाहुम्म ल,क सुम्तु व अला रिज़क़िकअफ़तरतु
अर्थः- “हे अल्लाह मैले तपाईको आज्ञाकारीको लागि रोजाराखें र तपाईले प्रदान गरेको आम्दानीबाट इफ्तार गरें
इफ्तार पछि योदुआ पढ्नु पर्छ-ज़,,बज़्ज़,मओ वब्बळतिल ओरूकु व स,,तल अजुइंशाअल्लाहु
अर्थः-प्यास मेटियोगला भिज्यो र अल्लाहलेचाहनु हुन्छ भने पुण्य पनि प्राप्त हुनेछ
यदि अरु कसैकोमा इफ्तारगरेमा यो दुआ पढ्नु पर्छ-अफ्त,र इन्दकुम अस्साएमून व अ,,क तआमकुम अलअबरारो व सल्लत अलैकुमुल मलाईकः” 
अर्थः- “तिम्रो साथरोजादारले इफ्तार गरे र तिम्रो खाना पुण्यवान व्यक्तिले खाए र फरिश्ताले तिमीलाईदयालुताको प्रार्थना गरून 

टोनी ब्लेयर की साली मुसलमान बनी

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की साली ने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लिया है. चेरी ब्लेयर की बहन लौरेन बूथ ने पिछले दिनों इस्लाम कबूल करने की घोषणा की. बूथ पेशे से पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 43 साल की बूथ ने इस्लाम कबूल करने की बात लंदन में पिछले दिनों सामाजिक संगठन ग्लोबल पीस एंड यूनिटी 2010 के बैनर तले हुए एक कार्यक्रम में उजागर की. कई इस्लामिक नेताओं की मौजूदगी में बूथ ने बताया कि उन्होंने यह फैसला उन लोगों की धारणा बदलने के लिए किया है जो इस्लाम को आतंकवाद फैलाने वाला मानते हैं.

http://www.dw-world.de/dw/article/0,,6147468,00.html

बूथ का कहना है कि अब वह उन सभी गतिविधियों से दूर रहेंगी जिसकी इजाजत इस्लाम नहीं देता। वर्ष 2007 में प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद ब्लेयर रोमन कैथोलिक बन गए थे। अब बूथ ने अपनी आस्था बदली है। ईरान का दौरा करने के बाद बूथ का इस्लाम की ओर से झुकाव हुआ।
स्थानीय समाचार पत्र "डेली मेल" के अनुसार बूथ दो बच्चों की मां हैं। अब वह घर से बाहर निकलते समय हिजाब पहनती हैं। इसके साथ ही उन्होंने अब शराब पीना छो़ड दिया है और नियमित नमाज पढ़ने के साथ पवित्र कुरआन पढ़ती हैं। कभी ब्रिटेन में टेलीविजन कलाकार रही बूथ ने कहा, ""छह सप्ताह पहले मैं ईरान गई थी। इस दौरान मैंने ईरान के पवित्र शहर कोम में एक दरगाह का दौरा किया। वहां मैंने अपने को अध्यात्म के नजदीक पाया।""
बूथ ने कहा, ""मैं हमेशा से यही मानती रही हूं कि मुस्लिम समुदाय बहुत प्रेम करने वाला और अमनपसंद हैं। अब मैं इस समुदाय का हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं।""

http://www.khaskhabar.com/blair-sister-in-law-converts-to-islam-1020102516635712217.html
(इस्लामिक वेबदुनिया)

अमरीकी सैनिकों ने अपनाया इस्लाम


अमरीकी सैनिकों ने अपनाया इस्लाम

क्या आपने भी सुना था कि खाड़ी युद्ध के दौरान तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपना लिया था। यह सच है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बदलाव के पीछे कौन हैं? जिन लोगों ने इस्लाम की यह दावत इन अमेरिकी सैनिकों तक पहुंचाई उनमें से एक अहम शख्सियत हैं डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स। अबू अमीना फीलिप्स जमैका में जन्मे और पढ़ाई कनाड़ा में की । फिलहाल वे दुबई अमेरिकन यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। अबू अमीना पहले ईसाई थे लेकिन 1972 में इस्लाम अपनाकर वे मुस्लिम बन गए।

बिलाल बताते हैं-'पहले खाड़ी युद्ध के दौरान मैंने नौसेना के धार्मिक विभाग में सऊदी रेगिस्तान में काम किया। अमेरिकी सैनिक इस्लाम के बारे में बहुत सी गलतफहमियां रखते थे। अमेरिका में उन्हें आदेश दिए गए थे कि वे मस्जिदों के करीब ना जाएं। हम उन्हें मस्जिदों में ले गए। मस्जिदों के अंदर की सादगी और माहौल को देखकर वे बेहद प्रभावित हुए। दरअसल जब उन्होंने पहली बार सऊदिया की जमीन पर कदम रखा था तो उन्हें यह एक अजीब जगह लगी थी जहां महिलाएं काला हिजाब पहने नजर आती थीं। लेकिन सऊदी अरब में रहने पर उन सैनिकों को एक खास अनुभव हुआ और ये उनके लिए आंखें खोल देने वाला अनेपक्षित अनुभव था। अमेरिकी सैनिक वहां के लोगों की मेहमाननवाजी देखकर आश्चर्यचकित रह गए। लोग उनके लिए ताजा खजूर और दूध लाते थे और उनका बेहद सम्मान किया जाता था। अमेरिकी सैनिकों ने ऐसी मेहमाननवाजी और आत्मीय व्यवहार कोरिया और जापान में नहीं देखा था जहां उनका बरसों तक पड़ाव रहा था।'

बिलाल बताते हैं-मैं वापस अमेरिका लौट आया और मैंने अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट में इस्लामिक चैप्टर्स की स्थापना की। मेरे सऊदी में रहने के दौरान तकरीबन तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपनाया। शायद आप मेरी इस बात पर भरोसा ना करें कि दुनिया में सिर्फ सऊदी अरब ही ऐसा देश है जहां अमेरिकी सैनिक अपने पीछे वार बेबीज(युद्ध के कारण अनाथ हुए बालक) नहीं छोड़ के आए। ये अमेरिकी सैनिक अपने तंबुओं में इस्लामिक सिद्धांतों और व्यवहार पर खुलकर चर्चा करते थे। ये मुस्लिम सैनिक अमेरिकी सेना में इस्लाम के दूत हैं। सऊदी अरब ने पश्चिमी देशों पर इस्लामी की अच्छी छाप छोड़ी है। मैंने देखा कि सऊदी अरब अपने नागरिकों की देखभाल अमेरिकी नागरिकों से बेहद अच्छे ढ़ंग से करता है। जहां बीस लाख अमेरिकी नागरिक आज भी गलियों और फुटपाथ पर सोते हैं, वहीं सऊदी अरब का एक भी नागरिक फुटपाथ पर नहीं सोता।

यू आए इस्लाम की आगोश में
अबू अमीना पहले ईसाई थे। उनका जन्म 1947 में जमैका में हुआ। वे अच्छे पढ़े लिखे परिवार से हैं। इनके माता-पिता दोनों टीचर थे। उनके दादा जी के भाइयों में से एक चर्च के मिनिस्टर और बाइबिल के विद्वान थे। इनका परिवार खुले विचारों वाला था। वे हर सण्डे अपनी मां के साथ चर्च जाते थे। जब वे ग्यारह साल के थे तो इनका परिवार कनाड़ा पलायन कर गया। पहले इनका नाम इनाके था। जब वे बायो केमेस्ट्री से ग्रेजुएशन कर रहे थे,उसी दौरान वे साम्यवादी विचारधारा के लोगों के सम्पर्क में आए। साम्यवाद का आकषर्ण उन्हें चीन भी ले गया। चीन से लौटकर वे कनाड़ा की साम्यवादी पार्टी में शामिल हो गए। साम्यवादी पार्टी में रहकर उन्होंने इसमें कई तरह की कमियां और दोष देखे। उन्हें उस पार्टी के नेताओं में अनुशासन की कमी नजर आती थी। उसका जवाब उन्हें यह मिलता था कि क्रांति के बाद सब ठीक हो जाएगा। पार्टी के फंड में से गबन का मामला भी उनके सामने आया। वे शहरी गुरिल्ला लड़ाई सीखने के लिए चीन जाना चाहते थे। लेकिन जो आदमी इनक ा इसके लिए चयन करने आया था वह नशेड़ी था। इन सब बातों ने अबू अमीना का साम्यवाद के प्रति मोह कम कर दिया।
अमीना बिलाल कैलीफोर्निया भी गए और वहां वे काले लोगों को इंसाफ दिलाने के मकसद से ब्लैक पेंथर्स गुट में शामिल हो गए। लेकिन उन्होंने वहां देखा कि उनमें से ज्यादातर लोग ड्रग्स लेते थे। सुरक्षा कमेटियों के नाम पर वे चंदा इकट करते थे और फिर उन पैसों को ड्रग्स और पार्टियों पर खर्च कर देते थे। अबू अमीना ने अमेरिका में मैल्कल एक्स, अलीजा मुहम्मद और उनके बेटे वरीथ दीन मुहम्मद क ो इस्लाम की ओर बढ़ते देखा। उन्होंने मुस्लिम बने मैल्कल एक्स की जीवनी पढ़ी। उन्होंने एलीजा मुहम्मद का कुछ साहित्य पढ़ा,पर उसका उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि एलीजा मुहम्मद के साहित्य में गोरे लोगों से जातीय घृणा जबरदस्त थी और एलीजा मुहम्मद का नेशन ऑफ इस्लाम भी इस्लाम की विचारधारा के अनुरूप नहीं था। उनका कहना है-मैं सब गोरे लोगों को शैतान के रूप में नहीं देखना चाहता था। अमीना फिलिप्स को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली किताब सैयद कुतुब की 'इस्लाम: द मिस अंडरस्टूड रिलीजन' थी। इस पुस्तक में इस्लाम समाजवाद, साम्यवाद, पूंजीवाद, अर्थव्यवस्था और आध्यात्मिक पहलुओं को अच्छे अंदाज में पेश किया गया था। उन्हें यकीन हो गया था कि इस्लाम पश्चिमी समाज के आर्थिक और सामाजिक जीवन में बेहतर भूमिका अदा कर सकता है। मौलाना अबुल आला मौदूदी की किताब 'टुवार्ड्स अंडरस्टेडिंग इस्लाम' ने उन्हें इस्लाम के बारे में विस्तृत नजरिया दिया। बिलाल ने इटली जैसे साम्राज्यवादी देशों से मोरक्को,लीबिया जैसे अफीक्री देशों द्वारा इस्लामिक नजरिए के साथ युद्ध जीतने का भी अध्ययन किया। वे कहते हैं- 'मुझो जानने को मिला कि इस्लाम थप्पड़ के लिए दूसरा गाल पेश करने की तालीम नहीं देता यानी इसमें जुल्म बर्दाश्त करते रहने की तालीम नहीं है। इस तरह इस्लाम का अच्छी तरह अध्ययन के बाद मैं इस्लाम का हिमायती बन गया और फिर 1972 में सोच समझाकर मैंने इस्लाम धर्म अपना लिया।'
बिलाल ने मिस्र के शख्स से अरबी और इस्लामी शरीअत सीखी। बिलाल ने विभिन्न स्रोतों से इस्लाम की जानकारी हासिल की। अबू अमीना ने इस्लामिक यूनिवर्सिटी मदीना से ग्रेजुएशन किया। बिलाल ने 1985 में रियाद यूनिवर्सिटी से इस्लाम धर्म में एमए और 1994 में इस्लाम पर ही पीएचडी की। बाद में वे इंग्लिश मीडियम के बच्चों को इस्लाम पढ़ाने लगे। उन्होंने बच्चों के लिए पांच इस्लामिक पाठ्यपुस्तकें भी लिखीं। बिलाल ने साल 2000 में ऑनलाइन इस्लामिक यूनिवर्सिटी भी गठित की। यह यूनिवर्सिटी इस्लाम में बीए और अन्य छोटे कोर्सेज कराती हैं। दुनियाभर के 160 देशों के करीब 20000 से ज्यादा स्टूडेंट इस यूनिवर्सिटी में पंजीकृत हैं।

भारत दौरा
अपनी पीएचडी के दौरान बिलाल भारत भी आए। उन्होंने उत्तर भारत के मुसलमानों की दयनीय दशा 
देखी। उन्होंने देखा कि उत्तर भारतीय मुसलमान अंधविश्वास में लिप्त हैं। वे केरल भी गए। यहां उनको अच्छी उम्मीद दिखाई दी।

बिलाल का मानना है कि पश्चिमी देशों में इस्लाम के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वे गरमी के मौसम में अमेरिका और कनाड़ा में इस्लाम और अरबी पढ़ाते हैं। उनका मानना है कि गैर मुस्लिम देशों के मुसलमानों को चाहिए कि वे इस्लामी समुदाय में इस्लामिक स्कूल चलाएं वरना इस्लाम को जिंदगी में लागू करने वालों की तादाद दस फीसदी से भी कम रह जाएगी। वे कहते हैं कि मुसलमान अपनी जिंदगी इस्लामिक उसूलों के मुताबिक गुजारें। अबू अमीना बिलाल की जिंदगी का मकसद है कि समाज में इंकलाब आ जाए लेकिन यह इंकलाब तभी आएगा जब हर शख्स अपने जीवन के आचरण को इस्लामिक मूल्यों के मुताबिक संवारेगा। और बिलाल ने अपनी कोशिश इसी के लिए लगा रखी है। 
अबू अमीना भारत के इस्लामिक चैनल पीसी टीवी से भी जुड़े हैं और यहां आप इनको इस्लाम पर बोलते हुए देख सकते हैं।

स्रोत:
सऊदी गजट्स बायोग्राफी
http://www.4newmuslim.org/

http://www.islamfortoday.com/
(इस्लामिक वेबदुनिया)

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) अन्तिम ईशदूत


हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) अन्तिम ईशदूत

परिस्थिति की उपरोक्त मांग के विशाल ख़ाके में सुन्दर रंग भरने के लिए ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को ईशदूत चुना। (आप सल्ल॰ की एक उपाधि ‘मुस्तफ़ा’ है, यानी ‘चुना हुआ’)। आप अन्तिम नबी (‘ख़ातमन्-नबीयीन’ अर्थात् नबियों...ईश सन्देष्टाओं...का सिलसिला ख़त्म करनेवाला) घोषित किए गए (क़ुरआन– 33:40)।
1. हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) यद्यपि अरब प्रायद्वीप (Arabian Penisula) में पैदा हुए, आपकी मातृभाषा अरबी थी, आपका प्रथम व प्रत्यक्ष संबोधन अरबों से था, आप पर अवतरित ईशग्रंथ ‘क़ुरआन’ की भाषा अरबी है। लेकिन आपकी (और क़ुरआन की) हैसियत अरब-क़ौमियत (Arab Nationalism) और अरबी भाषा तक सीमित नहीं है।
2. आप (सल्ल॰) के जीवनकाल में ही आपका आह्वान इथियोपिया, मिस्र, रोम, फ़ारस (ईरान), यमन, भारतीय उपमहाद्वीप आदि तक पहुंच चुका था। बाद की 12-13 सदियों के अन्दर पूरे विश्व में उसकी गूंज पहुंच गई और आपकी हैसियत ‘अरबी रसूल’ के बजाय सार्वभौमिक वैश्विक ईशदूत की बन गई। दुनिया के चप्पे-चप्पे पर मौजूद, अनेकानेक नस्लों और राष्ट्रीयताओं के लोग लगभग 150 करोड़ की तादाद में आप (सल्ल॰) के आह्वान के अनुपालक हैं। आप (सल्ल॰) ने जो धर्म पेश किया उस पर आधारित समूची समाज-व्यवस्था, राज्य व्यवस्था तथा शासन व्यवस्था सन 623 से 632 ई॰ के बीच आप ही के तत्वावधान में और आपके ही के अधीन स्थापित व सुचालित हुई, तो 1400 वर्ष तक इसका सिलसिला विश्व में कहीं न कहीं या अनेक भू-भागों पर क़ायम रहा और आज भी जारी है और जहां इस व्यवस्था को सक्रिय रहने का जितना अवसर मिला वहां उसी अनुपात में समाजी अमन, शान्ति व सलामती, बंधुत्व, न्याय, मानवाधिकार एवं बराबरी का बोलबाला रहा है। इससे सिद्ध होता है कि ज़माना चाहे जितना भी आगे बढ़ जाए, आपके ईशदूतत्व को निरस्त करके किसी नए ईशदूत के आने की ज़रूरत बिल्कुल नहीं है।
3. आप (सल्ल॰) को क़ुरआन में ईश्वर ने (मात्र अरबवासियों या मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि) ‘‘सारे संसारों के लिए साक्षात् दया व कृपा’’ की उपाधि दी (क़ुरआन– 21:107)।
4. आप (सल्ल॰) ने रंग, भाषा, वर्ण, वंश, जाति व राष्ट्रीयता आदि के आधार पर ‘श्रेष्ठ’ और ‘नीच’ की ‘‘जाहिलीयत’’ का समापन कर ‘‘मानवजाति के ऐक्य’’ (Oneness of Humankind) को स्थापित किया और टूटी हुई मानवजाति रूपी माला के बिखरे दानों को एकेश्वरवाद की लड़ी में पिरोया।
5. कोई ऐसी छोटी-बड़ी, जटिल नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक समस्या ऐसी नहीं जो आप (सल्ल॰) के समय में मौजूद रही हो (या आज 1400 वर्ष बाद भी विश्व में कहीं भी पाई जाती हो) और आपने उसका सफल समाधान न कर दिया हो। चरित्रहीनता, झूठ, बेईमानी, शराब, जुआ, चोरी, डकैती, रहज़नी, रिश्वत, गबन, अश्लीलता, अभद्रता, शोषण, नारी अपमान व शोषण, बालिका-वध (अब कन्या-भ्रूण-हत्या) आदि-उस तात्कालिक समाज में भी सबका उन्मूलन व दमन किया और आज भी आप (सल्ल॰) का आदर्श इस दिशा में सक्रिय व सक्षम सिद्ध हो रहा है। निष्पक्ष विद्वानों का मानना है कि वर्तमान युग की अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उद्घोषणा तथा युद्ध-आचारसंहिता और युद्धबन्दियों से संबंधित अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून आप (सल्ल॰) के ही आदर्श से लिए गए हैं।
ये मात्र थोड़े से तर्क, सिर्फ़ चन्द दलीलें हैं, जो आप (सल्ल॰) के अन्तिम (सार्वभौमिक व सार्वकालिक) ईशदूत होने की चलती-फिरती, साक्षात् दलीलें हैं। इनके अतिरिक्त आप पर अवतरित ईशग्रंथ ‘क़ुरआन’ के अन्तिम ईशग्रंथ होने के अनेक तर्क व प्रमाण ख़ुद क़ुरआन में और क़ुरआन के बाहर भी बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं।
क़ुरआन के पहले अध्याय (सूरह) की पहली आयत में अल्लाह को किसी जाति-विशेष का नहीं, सारे संसारों का पालनकर्ता (रब) कहा गया है। अन्तिम सूरह की पहली तीन आयतों में उसे सारे लोगों का रब, सारे लोगों का स्वामी (मालिक) और सारे लोगों का इष्ट पूज्य-उपास्य (इलाह) कहा गया है। अनेक आयतों में लोगों को ‘ऐ इन्सान’, ‘ऐ आदम की संतान’ और ‘हे लोगो’ कहकर संबोधित किया गया है। इस संबोधनशैली में काल, समय और स्थान (देश, राष्ट्र) की सीमाएं तोड़ दी गई हैं। क़ुरआन के नियमों, आदेशों और क़ानूनों पर आधारित ईश्वरीय व्यवस्था ने आज लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष बीत जाने पर भी ऐसी उत्कृष्ट व श्रेष्ठ नैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक एवं राजकीय व्यवस्था के नमूने पेश कर रखे हैं, जो इस तथ्य के तर्क व प्रमाण हैं कि अब इस ईशग्रंथ के अतिरिक्त किसी अन्य ईशग्रंथ की आवश्यकता कदापि नहीं है और यही स्थिति भविष्य के लिए भी है। इस प्रकार बिना किसी पूर्वाग्रह और नकारात्मक पक्षपात के देखा जाए तो क़ुरआन का अन्तिम ईशग्रंथ होना और इसके वाहक हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का अन्तिम ईशदूत होना बौद्धिक विश्लेषण और अक़्ली जायज़े से पुष्ट (Confirm) हो जाता है।
6. पिछले ईशदूतों के इतिहास पर समय और काल की धूल कुछ इतनी जमी हुई है और अज्ञानता, भ्रम एवं विरोधाभास की धुंध कुछ ऐसी छाई हुई है कि उनकी सम्पूर्ण जीवनी, उनकी शिक्षाएं, उनके कथनों व कर्मों का ब्योरा, उनका जीवन-आचरण, उनका चरित्र एवं आचार-व्यवहार, उनका मिशन और उनका आदर्शस्वरूप, शुद्धता, प्रामाणिकता व विश्वसनीयता के साथ उनके बाद के मानव-समाज को उपलब्ध न हो सका। या तो उन्हें सुरक्षित न रखा जा सका, या उनके बाद मानवीय हस्तक्षेपों ने उन्हें प्रदूषित, विकृत व परिवर्तित कर दिया, यहां तक कि उनके साथ ऐसी-ऐसी कहानियां, घटनाएं और मिथ्या-धारणाएं (Mythologies) जोड़ दी गईं जो किसी ईशदूत के लिए सर्वथा अनुचित थीं। उनका ऐसा चरित्र प्रस्तुत किया गया जो आगामी मानवजाति के लिए ‘आदर्श’ बन ही न सकता था।
उपरोक्त वस्तुस्थिति हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के संदर्भ में बिल्कुल भिन्न और उत्कृष्ट (Distinctly different) हो गई। आपका जन्म, आपकी पूरी जीवनी, आपका सम्पूर्ण जीवन-आचरण, आपका आह्वान, आपकी शिक्षाएं, आपका मिशन, ईश्वरीय मिशन में आपका संघर्ष, आपका चरित्र और आचार-व्यवहार, आपका व्यक्तिगत, दाम्पत्य, पारिवारिक व सामाजिक जीवन...यहां तक कि आपका बोलना, चुप रहना, मुस्कराना, हंसना, दुखी होना, क्षमा कर देना और बदला का औचित्य होने पर भी बदला न लेना, शान्ति व युद्ध की अवस्था में आपकी नीति व कार्यविधि, आपका सोना, चलना-फिरना, आपका लिबास व परिधान, आपका वुजू़ व स्नान करना, लोगों से दिन-प्रतिदिन के मामले निबटाना, लोगों के अधिकार देना और दिलाना, समाजसेवी, समाज-रचयिता, धर्म-गुरु, उपासक, उपदेशक, न्यायाधीश, शिक्षक-प्रशिक्षक, शासक-प्रशासक, योद्धा व कमांडर आदि की भूमिकाएं निभाना, ईश्वर की उपासना स्वयं करना और अपने अनुयायियों को ईशमान्य उपासना-पद्धति सिखाना तथा एक ईशपरायण समाज और सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था बनाना...अर्थात् आप (सल्ल॰) के सम्पूर्ण (Holistic) आदर्श (23 वर्षीय पैग़म्बरीय जीवन) का प्रारूपण व सृजन इतिहास की पूरी रोशनी में हुआ। इस आदर्श का एक-एक अंग, एक-एक पहलू और एक-एक सूक्षतम अंश आप (सल्ल॰) के जीवन-काल से ही बड़ी शुद्धता, सूक्षमता, प्रामाणिकता व विश्वसनीयता के साथ रिकार्ड किया जाता रहा। इसके लिए पूरा एक विज्ञान विकसित हुआ और एक वृहद, विशाल व विस्तृत ‘हदीसशास्त्र’ अस्तित्व में आया (हदीस=आप (सल्ल॰) की कथनी-करनी का लिखित व प्रमाणिक ब्योरा)। पहले पुस्तकों ने, फिर प्रिंट-मीडिया और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिर इन्टरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब (www) ने आप (सल्ल॰) के ईशदूतत्व को वैश्वीकृत (Globalised) और सार्वभौमिक व सार्वकालिक बना दिया।
islamdharma.org

रोजा नराख्नेवालाव्यक्तिको परिणामः


रोजा नराख्नेवालाव्यक्तिको परिणामः-जानी बुझि रमज़ानको रोजा नराख्नु महापाप हो । हज़रतअबू उमामा रजि० भन्नुहुन्छ,- मैले अल्लाहको रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लमले भनेको सुनेको थिए-म सुतेको थिए स्वप्नमा मेरो नजिक दुई जनाफरिश्ता आए जसले मेरो पाखुरामा समातेर उठाए र एक कठिन पहाडमा लगेर मलाई त्यसमाचढ्नु भने । मैले भनेः म त्यसमा चढ्न सक्दिन । उनिहरुले भनेः तपाई प्रयाश गर्नुहोस्हामी तपाईको मद्दत गर्छौं । मैले त्यसमा चढ्न शुरु गरेयहाँसम्म कि त्यो पहाडकोटाकुरामा पुगें त मैले त्यहाँ चिच्याउने र रुने आवाज सुने । मैले सोधेः यो रुने रचिच्याउने आवाज कस्को हो ?उनीहरुले उत्तर दिएः यो नर्क(जहन्नम) वासीको रुने रचिच्याउने आवाज हो । फेरि मलाई अगाडि लगे जहाँ मैले केही व्यक्तिलाई उधोमुन्टोपारेर झुण्ड्याएको देखेजसको नाकको नाथ्री चिरिएको थियो त्यसबाट रगत बगिरहेको थियो। मैले सोधेः यी कस्ता व्यक्ति हुन उनले उत्तर दिएः यिनीहरु यी व्यक्ति हुन जसलेरोजाको दिनमा खान पिन गर्दथे । (सहीह अत्तरगीब वत्तरहीब)
अन्तमा यसरमज़ान पर्वको सुवर्ण अवसरमा सम्पूर्ण नेपाली दाजु-भाई तथा दिदी बहिनीहरुमा

रोजा कसको लागि छुट छः


रोजा कसको लागि छुट छः-यस पावन अवसरमाप्रत्येक वालिग मुसलमानहरु जो बुद्धिविवेक एवं जस्को दिमागी सन्तुलन बिग्रेकोछैनस्वस्थ्य छ भने उसले रोजा बस्नु अनिवार्य छ तर वालकविमारीमहिलाहरुमामासिकश्रावभएको अवस्थामासुत्केरी भएको अवस्थामा वा जसलाई अघिपछि पनि भएको समयअलावा रगत बगिरहने छ भने र विमारी तथा बच्चालाई दुध खुवाउने आमालाई बच्चाको लागिदुध नआउने अवस्था छ भने डक्टरले छुट दिएको खण्डमा पनि रोजा बस्नु पर्दैन पछि ठीकभएपछि अर्को रमज़ान अगाडि नै राखि सक्नुपर्छ। त्यस्तै कम्तिमा असी/नब्बे किलोमिटरटाढाको यात्रा गरेको छ भने उसको लागि पनि यात्रा अवधि भर रोजा छुट छ तर राख्नचाहन्छ भने राख्न सक्छ। यदी कहिले पनि राख्न नसक्ने भए दिनको एक छाकको दरले गरिवलाईखाना खुवाउनु पर्छ। अरु सबै व्यक्तिको लागि रोजा बस्नु अनिवार्य

व्रतका फाईदाहरु


व्रतका फाईदाहरु- रोजा (व्रत) राख्नाले मनुष्यलाईपवित्रताधार्मिकताशारीरिक एवं मानसिक फाईदा हुन्छ । वैज्ञानिकहरुको भनाई अनुसाररोजा राख्नाले आत्मा सन्तुष्टीपेटको बिमारपित्तशयको बिमाररगतको बिमारहाईब्लड प्रेशरमटुको रोगकानआँखाजोर्नि तथा ढाड दुख्ने बिमारबाट समेतसुरक्षित हुन सकिन्छ । डा. एयर सेनको भनाई छ- भोको बस्नुको उत्तम तरिका रोजा हो जोइस्लामी तरिका अनुसार राखिन्छ । ईशाई डा. रिचर्ड भन्नुहुन्छ- कुनै पनि व्यक्तिलेभोको बस्ने विचार भए उसले रोजा (व्रत) राखोस् । म ईसाइ भाईहरुलाई भन्दछु कि भोकोबस्नु छ भने मुसलमानहरुको तरीका अनुसार बस्नु उत्तम हुन्छ । रोजा (व्रत) राख्नालेयस लोक र परलोक दुवैमा फाईदा हुन्छ । यस लाभको साथ साथै महत्वपूर्ण कुरा यो हो किमुसलमानहरु रोजा व्रत केवल अल्लाहको प्रशन्नता प्राप्तिको लागि अल्लाहको आज्ञानुसारराख्छन् । पवित्र धर्म ग्रन्थ कुरआनको सूरह अल बकरामा भनिएको छ- ए मुसलमानहरु रोजातिमीहरुको लागि अनिवार्य गरिएको छ जसरी तिमीहरुको पूर्खाहरु माथि अनिवार्य गरिएकोथियो किनकि तिमीहरु अल्लाह ईश्वर सँग डराउनु” । कुरआन सूरः अल बकर आयत नं.

रोजा (ब्रत)


रोजा (ब्रत) इस्लामको चौथो स्तम्भ हो र रोजा(ब्रत) राख्नसन् २ हिजरी देखि अनिवार्य भयो । रसूलुल्लाह सल्ल.को भनाई छः-जसले ईमान र पुण्यकोलागि रोजा(ब्रत) राख्दछन् उसको सम्पूर्ण पापहरु अल्लाहले माफ गर्नुहुन्छ । (हदीस-मुस्नदअहमद)
अझ अर्को थप पुष्टी गर्दै हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम.भन्नुहुन्छः-अल्लाह तआलाले भन्नुहुन्छ मानिसको हर कार्य उसको लागि हो तर रोजा (ब्रत) मेरो लागि हो र म त्यसको बदला दिन्छु ।(हदीस- मुस्नदअहमद रमुस्लिम)
रोजा(ब्रत) दुई किसिमको हुन्छ । फर्ज(अनिवार्य) र नफिल(अनिवार्य नभएकोअर्थात गरे पुण्य नगरे पाप पनि हुँदैन) फर्ज रोजा(ब्रत) तिन किसिमको हुन्छ
(
१)रमजान महिनाको रोजा (२) कफ्फरा (प्रायश्चित) को रोजा(ब्रत) (३) मन्नत(भाकल)कोरोजा(ब्रत) ।
बिहानदेखि सूर्यास्तसम्म खानपीन नगर्नुलाई रोजा(ब्रत) भनिन्छ । सन्२ हिजरीमा रमजानको महीना भरिको रोजा(ब्रत) राख्नु सर्वप्रथम मुसलमानहरुका लागिअनिवार्य गरिएको थियो । प्रत्येक बालिग र होश भएको र रोजा(ब्रत) राख्न सक्षमव्यक्तिले रमजानको महीना भरी रोजा(ब्रत) राख्नुपर्दछ । जानीजानी एउटा पनिरोजा(ब्रत) छाड्नु हुँदैन 

آج کا افغانستان اور ایک ذاتی وضاحت

سلیم صافی
گزشتہ ایک ہفتہ افغانستان میں گزرا اور اس حسین و جمیل دھرتی کو جتنا بے چین اور بے یقینی کا شکار اب کے بار پایا، پہلے کبھی نہیں پایا تھا۔ سیکورٹی کے انتہائی اقدامات کی وجہ سے کابل کا خوبصورت اور دلآویز شہر شاید اسلام آباد سے زیادہ محفوظ ہے لیکن کنفیوژن، شکوک، خدشات اور عدم تحفظ کا احساس اس قدر کہ الحفیظ والامان۔بھائی کی فاتحہ کی غرض سے افغان صدر حامد کرزئی کی خدمت میں حاظر ہوا۔ انہیں پہلی بار رنجیدہ اور زیردباؤ پایا۔ انہوں نے دوپہر کے کھانے کے لئے ٹھہرا دیا۔ وہاں نوجوان شاعر اور صحافی ہارون حکیمی زابل صوبے کے ایک نوجوان کو ملوانے لائے تھے۔

دس کے قریب بہن بھائیوں کا گروپ فوٹو ان کے ہاتھ میں تھا۔ وہ کرزئی صاحب کے سامنے فریاد کرنے لگے کہ والد کے ٹارگٹ کلنگ کا نشانہ بننے کے بعد وہ گھر کے واحد کفیل رہ گئے ہیں۔ انہیں تعلیم کا سلسلہ بھی ختم کرنا پڑگیا لیکن اب انہیں بھی دھمکیاں مل رہی ہیں۔ اس لئے انہیں اور ان کے گھرانے کو کابل منتقل کرکے روزگار دلوایا جائے۔ نوجوان اپنا قصہ بیان کررہے تھے تو کرزئی صاحب کی آنکھوں میں آنسو تھے۔ نوجوان کے حوالے سے اپنے چیف آف اسٹاف عبدالکریم خرم کو ہدایات جاری کرنے کے بعد مجھ سے مخاطب ہوکرکہنے لگے کہ اس طرح کے روزانہ درجنوں کیسز میرے پاس آتے ہیں۔ ہمارے ہر صاحب حیثیت فرد کو جینے اور ہمارے بچوں کو پڑھنے نہیں دیاجارہا ہے پھر آپ لوگ مجھے کہتے ہو کہ جذباتی نہ ہوں۔ آخر افغان اور انسان ہوں، جذبات پر کب تک قابو رکھوں گا؟

حقیقت یہ ہے کہ اس وقت حامد کرزئی ہر حوالے سے بڑی مشکل میں گرفتار ہیں۔ امریکہ کے ساتھ ان کی کشمکش، تصادم میں بدل گئی ہے۔ امریکیوں کی اتنی توانائیاں طالبان کو کاؤنٹر کرنے کے لئے صرف نہیں ہورہی ہیں، جتنی وہ حامد کرزئی کو سبق سکھانے پر صرف کررہے ہیں اور حامد کرزئی بھی طالبان سے زیادہ امریکی سازشوں اور بے وقوفیوں کا مقابلہ کرنے میں مگن نظر آتے ہیں۔ امریکی انہیں اپنے ایجنڈے کی راہ میں سب سے بڑی رکاوٹ سمجھنے لگے ہیں اور کابل کے باخبر افراد حامد کرزئی کی زندگی کے بارے میں پریشان اور سانحہ بھاولپور جیسے کسی سانحے کا خدشہ ظاہر کررہے ہیں، دوسری طرف امریکی حامد کرزئی کی کسی کوشش کو کامیاب ہونے نہیں دیتے۔ وہ طالبان اور دیگر مخالفین سے ہر قیمت پر مفاہمت کرنا چاہتے ہیں لیکن وہ جومطالبات کررہے ہیں انہیں پورا کرنا کرزئی صاحب کے بس کی بات نہیں۔

طالبان اور حکمت یار مذاکرات کے آغاز کیلئے غیرملکی افواج کے انخلاء کی شرط عائد کررہے ہیں اور امریکیوں نے دباؤ بڑھایا ہوا ہے کہ حامد کرزئی 2014 ء کے بعد وہاں پر ان کے فوجی اڈوں کی موجودگی کے لئے اسٹریٹجک معاہدہ ( جس کے لئے حامد کرزئی تیار نہیں) پر دستخط کریں ۔ایک طرف حکومتی مخالفین کے ساتھ صلح کی کوئی صورت نظر نہیں آتی اور دوسری طرف ازبک، تاجک اور ہزارہ افغانوں کے ساتھ ساتھ وہ پختون افغان بھی طالبان کے ساتھ مفاہمت کی شدید مزاحمت کررہے ہیں جو طالبان کے دور میں زیرعتاب رہے۔ طالبان اور حکمت یار حامد کرزئی سے کسی خیر کی توقع نہیں رکھتے اور مذکورہ عناصر افغان میڈیا کیساتھ ملکر حامد کرزئی کو طالبان کا ہمدرد اور ایجنٹ جیسے طعنوں سے نواز رہے ہیں ۔ پاکستانی عوام اور میڈیا کی نظروں میں حامد کرزئی پاکستان مخالف اور امریکی ایجنٹ ہے جبکہ افغانستان میں ان کے مخالف عناصر اور افغان میڈیا(جو غیرپشتونوں کے زیراثر ہے) حامد کرزئی اور ان کے ساتھیوں کو پاکستانی پٹھو، آئی ایس آئی کا تنخوا دار اور وطن کے غدار جیسے القابات سے یاد کررہا ہے ۔ وہ تعاون کے سلسلے میں احتیاط کا مظاہرہ کرتے ہیں تو پاکستان ناراض ہوتا ہے اور پاکستان کے قریب آتے ہیں تو امریکہ برہم ہوجاتا ہے۔ ایران کو قریب لاتا ہے تو سعودی عرب کی ناراضگی یقینی ہے اور مکہ کا رخ کرتے ہیں تو تہران تعاون سے ہاتھ کھینچ لیتا ہے۔ اسی طرح پاکستان کا کردار بھارت کو گوارا نہیں اور ہندوستان کا اثرورسوخ پاکستان کو راس نہیں آتا۔

دراصل جنگی حکمت عملی کی ناکامی کے بعدامریکی جنرل ڈیوڈ پیٹریاس نے افغانستان میں ایک نہایت گندے دھندے کو رواج دیا۔ انہوں نے عراق کی طرز پر طالبان کے دوسرے اور تیسرے درجے کی قیادت کی ٹارگٹ کلنگ شروع کردی جس کے جواب میں طالبان اور دیگر عناصر بھی اس جانب متوجہ ہوئے۔ چنانچہ آج پراسرار ٹارگٹ کلنگ کی وجہ سے پورا افغانستان اور بالخصوص پختون بلٹ جہنم بن گیا ہے۔ کوئی فرد کسی بھی شعبے میں اگر قیادت یا حیثیت کا حامل ہے تو اسے نہیں چھوڑا جارہا ہے ۔ قبائلی سردار ہو، سیاسی یا جہادی رہنما ہو، ادیب ہو، شاعر ہو، صحافی ہو، کاروباری ہو یا صاحب فن ، جو بھی سراٹھاتا ہے اسے قتل کردیا جاتا ہے۔ کوئی خودکش حملے میں مارا جاتا ہے، کسی کو بارودی سرنگ کے ذریعے اڑایاجاتا ہے اور کسی کو گولی کا نشانہ بنایا جاتا ہے لیکن قاتل کا کوئی پتہ نہیں چلتا ۔ احمد ولی کرزئی کے قتل کو دیکھ لیجئے، انہیں پاکستان میں پاکستان کا دشمن اور افغانستان میں آئی ایس آئی کا ایجنٹ کیا جاتا تھا۔ خود ان کے اہل خانہ کو بھی یقین ہے کہ ان کی ہلاکت میں طالبان کا کوئی ہاتھ نہیں لیکن تماشہ یہ ہے کہ طالبان کے ترجمان ذبیح اللہ مجاہد نے ان کے قتل کی ذمہ داری قبول کرلی۔

امریکہ کے زیراثر حامد کرزئی کے مخالفین یہ پروپیگنڈا کررہے ہیں کہ احمد ولی کرزئی کو آئی ایس آئی نے قتل کرایا اور مزید یقین دلانے کے لئے ان عناصر نے قندھار میں پاکستان کے خلاف مظاہروں کا پروگرام بھی بنادیا جس کی حامد کرزئی نے اجازت نہیں دی لیکن دوسری طرف افغانستان کے اندر کم وبیش ہر پختون کو یقین ہے کہ احمد ولی کرزئی کو سی آئی اے نے قتل کرایا ہے ۔لوگ یہ بھی سوال اٹھاتے ہیں کہ اگر طالبان ہی سب کچھ کررہے ہیں تو پھر پرانے کمیونسٹوں اور شمال کے لیڈروں کی بجائے صرف پختون اور زیادہ تر پرانے مجاہد کیوں نشانہ بن رہے ہیں؟ دراصل ماضی میں حامد کرزئی بھی دو بڑی سنگین غلطیوں کے مرتکب ہوئے۔ موقع اور وسائل ہونے کے باوجود انہوں نے گزشتہ سالوں میں اپنی سیاسی جماعت نہیں بنائی۔ دوسری طرف جو بھی پختون آگے بڑھتا اس سے وہ خطرہ محسوس کرتا، یوں انہوں نے اپنے بعد کسی اور پختون کو بطور لیڈر ابھرنے نہیں دیا۔ احمد ولی کرزئی ان کا ممکنہ جانشین بن سکتے تھے لیکن وہ اس دنیا میں نہیں رہے۔ اب خاکم بدہن اگر حامد کرزئی کو کچھ ہوگیا تو پختونوں میں ان کی جانشینی کے لئے کوئی متبادل تیار نہیں۔ یوں لامحالہ دنیا، امریکہ اور افغان کسی غیرپختون کی طرف جائیں گے جو پاکستان اور طالبان دونوں کا شدید مخالف ہو گا۔

لگتا ہے افغانستان ایک بار پھر انارکی کی طرف جارہا ہے۔ امید ختم ہوتی جارہی ہے اور مایوسی پھیل رہی ہے۔ افغانستان کے اندر بھی عام تاثر یہی ہے کہ امریکی پاکستان اور حامد کرزئی کے عدم تعاون کی وجہ سے برہم ہوگئے ہیں ۔ وہ چڑچڑے پن کا شکار ہوگئے ہیں ۔اب وہ افغانستان اور پاکستان دونوں سے انتقام لینے پر اتر آئے ہیں ۔ یوں دکھائی دیتا ہے کہ ایک سوچے سمجھے منصوبے کے تحت شہرناپرسان کو جہنم بنایا جارہا ہے۔ بچاؤ کا واحد راستہ یہ ہے کہ افغانستان کے اندر حامد کرزئی، طالبان اور حزب اسلامی آپس میں مفاہمت کرلیں ۔ اسی طرح پاکستان اور افغانستان حقیقی معنوں میں پورے اعتماد کے ساتھ مشترکہ حکمت عملی بنائیں۔ تعلقات کافی بہتر ضرور ہوئے ہیں لیکن افغان حکومت پاکستان کے رویّے سے اب بھی مطمئن نہیں جبکہ پاکستان میں بھی بدستور حامد کرزئی کے بارے میں شکوک پائے جاتے ہیں۔ اسی طرح جو بھی حکمت عملی بنے ، اس میں ایران اور چین کو بھی ساتھ لینا ہوگا۔ امریکہ جیسی بڑی قوت اور اس کے مغربی اتحادیوں کے اس غلیظ گریٹ گیم کو صرف اس صورت میں ناکام بنایا جاسکتا ہے کہ مذکورہ چار کھلاڑی اور بالخصوص پاکستان اور افغانستان شک پر مبنی نیم دلانہ تعاون کی بجائے اخلاص اور حقیقی تعاون کا مظاہرہ کریں ۔اس عمل میں ترکی اور سعودی عرب کا تعاون اور رول بھی ضروری ہے۔نہیں تو امریکی بھی ہار جائیں گے اور ہم بھی ۔ وہ تو ہارنے کے بعد واپس چلے جائیں گے لیکن ہماری آئندہ نسلیں اس جہنم میں کیسے جئیں گی ؟

ایک وضاحت: محترم ہارون الرشید صاحب بلبل نالاں ہیں اور سوائے چند زیادہ تر ہر کسی سے نالاں رہتے ہیں لیکن میرے دل میں ان کے غیرمعمولی عزت اور محبت کی ایک وجہ یہ بھی ہے کہ شدید نظریاتی اختلاف کے باوجود وہ کبھی مجھ سے نالاں نہیں ہوئے۔ میں نے ہمیشہ انہیں احترام اور انہوں نے بے انتہا محبت سے نوازا ۔ ان کی اس محبت اور شفقت کا اندازہ اس سے بھی لگایا جاسکتا ہے کہ کالم بھیجنے کے بعد انہوں نے مجھے افغانستان فون کیا اور پہلے سے آگاہ کیا کہ تمہارے بارے میں کالم جاچکا ہے۔ میرے وضاحتی کالم کو پڑھنے سے انہیں بڑا دکھ ہوا اور انہوں نے کالم سے جو تاثر لیا ، اس کے بعد وہ حق بجانب بھی تھے۔ اس دن ان کا فون آیا تو میں نے دیکھا کہ بلبل نالاں پہلی بار بلبل رنجیدہ بنکر غیرمعمولی طور پر سنجیدہ گفتگو کررہے ہیں۔ انہوں نے شکایت کی کہ میں نے ان کی توہین کی ہے۔ جواب میں استغفراللہ کہتے ہوئے عرض کیا کہ کبھی سیاسی لیڈروں کے بارے میں کوئی لفظ توہین کی غرض سے نہیں لکھا تو آپ جیسے بڑے بھائی اور استاد کے بارے میں یہ گستاخی کیسے کرسکتا ہوں۔ انہوں نے کہا کہ تم دوبارہ پڑھ لو۔ تم نے مجھے فلاں اور فلاں کا ایجنٹ بنا دیا ہے۔

جواباً عرض کیا کہ بلاشبہ کالم رات کے تین بجے لکھا ہے لیکن آپ کو پتہ ہے کہ میں دن کی طرح رات کو بھی ہوش میں رہتا ہوں۔ اگر واقعی آپ نے یہ محسوس کیا ہے کہ میں نے آپ کی توہین کی ہے تو معذرت لیکن کالم میں نے بقائمی ہوش و حواس اور انفرادی احتجاجوں کے طویل سلسلے کے بے اثر ہونے کے بعد (گویا اپنے نالے کو پختہ ہونے کی خاطر میں نے کئی ماہ نہیں بلکہ کئی سال تک پختہ ہونے کے لئے سینے میں تھامے رکھا تھا) لکھا ہے۔ میں نے عرض کیا کہ میں مغربی افغانستان گیا تھا اور ابھی پغمان سے لوٹ کر آیا ہوں ۔ تھکا ہوا ہوں اور آپ کی ہدایت کے مطابق کالم دوبارہ پڑھنے کے بعد بات کرونگا۔ دوبارہ پڑھنے کے بعد بھی میں اپنی رائے پر قائم ہوں۔ تاہم اگر ہارون الرشید صاحب کو اس میں کہیں توہین کا پہلو نظر آیا ہے تو میں اس پر معذرت خواہ ہوں۔ ان سے نظریاتی اختلاف تھا ، ہے اور شاید مستقبل میں بھی رہے گا لیکن میرے دل میں نہ صرف ان کا بے حد احترام ہے بلکہ ان کی اردو دانی اور جرأت پر مجھے رشک آتا ہے ۔ بڑا بھائی اور استاد ہونے کیساتھ ساتھ میں چونکہ ہارون الرشید صاحب کو مخلص ، قیمتی اور باصلاحیت انسان سمجھتا ہوں۔

عمران خان کی طرح جب میں ان کی صلاحیتوں کو غلط جگہ پر استعمال ہوتے دیکھتا ہوں تو مجھے دکھ بھی بہت ہوتا ہے لیکن یہ دکھ اب میں دل ہی دل میں سہتا رہوں گا اور آئندہ کیلئے وہ میری ذات کے بارے میں کچھ بھی لکھیں میں جواب نہیں دوں گا ۔ وجہ صاف ظاہر ہے ”جنگ“ کا یہ قیمتی صفحہ بھائیوں اور دوستوں کی جنگوں کی بجائے قوم اور ملک کے مسائل پر بحث کیلئے مختص ہے۔ ایشوز اور اصولوں کے لحاظ سے اختلاف کی گستاخی آئندہ بھی کرتا رہوں گا لیکن ذات کے حوالے سے نہ جواب دوں گا اور نہ انہیں موضوع بحث بناؤں گا۔ میں اس دن سے اللہ کی پناہ مانگتا ہوں کہ دانستہ ہارون الرشید جیسے محترم بھائی اور استاد کی توہین کروں۔ وہ بلبل نالاں بھی رہے تو میرے لئے محترم ہیں۔ انہیں بلبل رنجیدہ بنتے نہیں دیکھ سکتا۔

بہ شکریہ روزنامہ جنگ

Wednesday, February 23, 2011

Deobund Ki Diary By Shk Meraj Rabbani VCD 2 / 8

राम्रो व्यवहार र धर्म विद्को मन्तव्य


राम्रो व्यवहार र धर्म विद्को मन्तव्य

ram/o Sv-av r Aolmaka mNtByh"
haifj ;Bne rjb rhemhuLlahle ram/o Sv-avbare kehI mNtByh" wLle` gnuR -@ko 2 tIm)ye tl kehI p/Stut 2n\ ˆ
1. hsn bsrIle -Nnu-o ˆ mhanta, 0n `cR gir pu*y kmawnu t9a du`ma 0EyR 0ar8 gnuR caih& ram/o Sv-av ho | 
2. ABduLlah ibn mobark rhemhuLlahle -Nnu-yo ˆ ha%islo Anuhar, 0n `cR gir pu*y kmawnu t9a Ashaymai9 -@ko ANyay r ATyacarko ivro0ma lDnu ram/o Sv-av ho | 
3. ;mam Ahmdle -Nnu-o ˆ irs ngnuR t9a A"ko `u=Idei` :QyaR r Dah n gnuR | 
4. kehI Aolmale -Nnu-oˆ ma{ ALlah U ko laig irs ngnuR, ibdAtI t9a nram/o maN2e bahek sbEko laig ha%islo Anuharle Svagt gnuR, A"ba4 -@ko gLtI la: xma idnu, A% hd t9a p/i=x8ko laig bdla ilnu, hrek muiSlm t9a s&i0 -@ko maN2ela: du` nidnu t9a =oiqtla: wsko hk idlawnu caih& sbE kurah" ram/o Sv-av nE ho

مسئله آمين و رفع يدين

Jawabaat Shk Meraj Rabbani 1.1

Wednesday, February 16, 2011

संसारका सुप्रसिद्ध विद्वानको दृष्टिमा- इस्लाम

संसारका सुप्रसिद्ध विद्वानको दृष्टिमा- इस्लाम
ibrahim
संसारका सुप्रसिद्ध विद्वान र बुद्धिजिवीको दृष्टिमा मुहम्मद सल्ल० को बारेमा के कस्ता धारणाहरु राख्दछन् त यस सम्बन्धमा तल हेरौं।
नेपोलियन वोनापार्टः- "त्यो दिन टाढा छैन कि सबै देशका राजनीतिज्ञहरु मिलेर कुरआनको सिद्धान्त अनुसार एकै किसिमको शासन अपनाउन सक्छन्। कुरआनको शिक्षा र उसको सिद्धान्त सत्यमा आधारित छ र मानव जातिलाई खुशी र खुसियाली र सम्पन्नता दिलाउने किसिमको छ अतः ईश्वरद्वारा चुनिएका रसूल मुहम्मद सल्ल० र उनि माथि अवतरित गरिएको पुस्तक कुरआनमा मलाई गर्व छ र म वहाँको सेवामा श्रद्धान्जली अर्पण गर्दछु ।"
महात्मा गान्धीः- ‘‘मैले कुरआनलाई अनेक पटक ध्यान पुर्वक अध्ययन गरे, सत्य र अहिंसाको शिक्षा त्यसमा देखेर मलाई धेरै खुशी लाग्यो।’’
डा. सेमुअल जांनसनः- वहाँले आफ्नो विश्व प्रशिद्ध पुस्तक ‘ओरियन्टल रीलीजेन्स’ मा लेख्नु हुन्छ; कुरआन न गद्य हो न पद्य फेरि पनि त्यसमा गद्यको छन्द पनि आउँछ र पद्यको सौंन्दर्य पनि। त्यो न इतिहास हो न कसैको जीवन चर्या, फेरि पनि नसिहत र शिक्षाको दृष्टिले त्यो सबैभन्दा प्रभावकारी छ।
हजरत मूसाको तौरात एकै पटक प्राप्त भएको थियो, तर…कुरआन एकै समयमा अवतरण भएको होइन र न एकै समयमा पेश गरिएको थियो। प्लेटोको किताबमा सर्वेक्षण र अनुसन्धानको तरीका अपनाइएको थियो तर कुरआनका तरीका र उसको शैली स्वयं उसको आफ्नो छ। यो एउटा आह्वानकर्ताको पुकार हो। तत्वदर्शिताले भरिपूर्ण, खुब मेहनत गर्न जोश उत्पन्न गर्ने, अनुशासन पालन गर्नमा जोड दिने किसिमको पुस्तक हो। आफ्नो सन्देशको विरोध गर्नेलाई चुनौति दिनेवाला पुस्तक, दर्द र सहानुभूतिको साथ उनिहरुलाई सम्झाउनेवाला, पुस्तक यो यति ज्ञानपूर्ण र व्यापक छ कि हरेक देश र हरेक युगका मानिसले जानी वा नजानी, ईच्छित वा अनिच्छित यस शिक्षाको प्रभावमा आफुलाई आत्मा समर्पण गर्न विवश गराउँछ। यसको प्रतिध्वनि सदनमा पनि सुन्न सकिन्छ र रेगिस्तानमा पनि, शहरमा पनि सुन्न सकिन्छ र गाउँमा पनि। विना कुनै भेदभाव हर व्यक्तिमा यसको छाप परेको पइन्छ।
डा.सेमुअल अझै भन्नुहुन्छ, पहिले यस किताबले आफ्नो सन्देश आपनाउने वालाको दिललाई गर्मायो, फेरी उनिहरुलाई एक सामुहिक आन्दोलनमा परिवर्तन गर्यो। यो आन्दोलन तुफान जस्तै उठ्यो र ईरान तथा एसियाको विभिन्न देश हुँदै टाढा-टाढासम्म फैलियो। वहाँ जुन निर्णयात्मक विचार धारा थियो, त्यो आन्दोलनले आफ्नो कब्जामा समेटी दियो र अन्धकारमा रुमलिएको समाजलाई ज्ञान र बुद्धिमताको शिक्षा दियो।
कुरआन मजीदको पहिलो अंग्रेजी अनुवादक मिस्टर राडुवेल ले आफ्नो भूमिकामा कुरआन मजीदको प्रशंसा यसप्रकार गरेका छन् ; ” अरबका अशिक्षित, घमण्डी, असभ्य मानिसहरुलाई केही समयमै संसारको नेतृत्व र योग्य शासक यस पुस्तकले बनायो। मानौं कुनै जादुवालाले जादुको छडी घुमायो र एक महान क्रान्ति अरबमा तुरुन्तै आयो।”
१ जनवरी १९४५ ई. मा श्रीमति सरोजनी नायडुले मुस्लिम इन्स्टीट्युट हाल कलकत्तामा वहाँले श्रद्धाञ्जली यस शब्दमा पेश गर्नुभयो-”कुरआन मजीद शिष्टाचार र न्यायको घोषणा-पत्र हो, स्वतन्त्रताको चार्टर हो, व्यवहारिक जीवनमा सत्य एवं न्यायको शिक्षा दिनेवाला कानूनको महान पुस्तक हो।
कुरआन बाहेक अरु कुनै धार्मिक पुस्तक जीवनको सम्पूर्ण क्षेत्रमा र हरेक पक्षमा, व्यवहारिक व्याख्या र समस्या समाधान गर्न सक्दैन।
जर्मनका विद्वान गोयटेले भन्नुभयो; “जब म कुरआन हेर्छु त नयाँ नयाँ शब्दको अर्थ उल्झन खुल्दै जान्छ। यो पुस्तकलाई अध्ययन गर्नेहरुलाई बिस्तारै बिस्तारै आफूतर्फ तान्दै लान्छ र अन्तमा उसको मन-मस्तिष्कमा छाउँछ ।”
प्रशिद्ध इतिहासकार गिब्नले यस शब्दमा श्रद्धाञ्जली व्यक्त गर्नुभएको छः- एकेश्वरवादको स्पष्ट शब्दमा बयान गर्नेवाला र हृदयमा एकेश्वरवादको छाप लगाउनेवाला महान पुस्तक कुरआन मजीद हो।
इन्साइक्लोपेडिया अफ ब्रिटेनका सम्पादकले पनि हजरत मुहम्मद सल्ल० लाई उनको सेवामा श्रद्धाञ्जली प्रस्तुत गरेकाछन्; ‘‘संसारमा सबैभन्दा धेरै अध्ययन र कण्ठस्थ गरिनेवाला पुस्तक कुरआन मजीद हो। यो विशेषता संसारको अन्य कुनै पनि धार्मिक पुस्तकलाई प्राप्त छैन।