परिस्थिति की उपरोक्त मांग के विशाल ख़ाके में सुन्दर रंग भरने के लिए ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को ईशदूत चुना। (आप सल्ल॰ की एक उपाधि ‘मुस्तफ़ा’ है, यानी ‘चुना हुआ’)। आप अन्तिम नबी (‘ख़ातमन्-नबीयीन’ अर्थात् नबियों...ईश सन्देष्टाओं...का सिलसिला ख़त्म करनेवाला) घोषित किए गए (क़ुरआन– 33:40)।
1. हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) यद्यपि अरब प्रायद्वीप (Arabian Penisula) में पैदा हुए, आपकी मातृभाषा अरबी थी, आपका प्रथम व प्रत्यक्ष संबोधन अरबों से था, आप पर अवतरित ईशग्रंथ ‘क़ुरआन’ की भाषा अरबी है। लेकिन आपकी (और क़ुरआन की) हैसियत अरब-क़ौमियत (Arab Nationalism) और अरबी भाषा तक सीमित नहीं है।
2. आप (सल्ल॰) के जीवनकाल में ही आपका आह्वान इथियोपिया, मिस्र, रोम, फ़ारस (ईरान), यमन, भारतीय उपमहाद्वीप आदि तक पहुंच चुका था। बाद की 12-13 सदियों के अन्दर पूरे विश्व में उसकी गूंज पहुंच गई और आपकी हैसियत ‘अरबी रसूल’ के बजाय सार्वभौमिक वैश्विक ईशदूत की बन गई। दुनिया के चप्पे-चप्पे पर मौजूद, अनेकानेक नस्लों और राष्ट्रीयताओं के लोग लगभग 150 करोड़ की तादाद में आप (सल्ल॰) के आह्वान के अनुपालक हैं। आप (सल्ल॰) ने जो धर्म पेश किया उस पर आधारित समूची समाज-व्यवस्था, राज्य व्यवस्था तथा शासन व्यवस्था सन 623 से 632 ई॰ के बीच आप ही के तत्वावधान में और आपके ही के अधीन स्थापित व सुचालित हुई, तो 1400 वर्ष तक इसका सिलसिला विश्व में कहीं न कहीं या अनेक भू-भागों पर क़ायम रहा और आज भी जारी है और जहां इस व्यवस्था को सक्रिय रहने का जितना अवसर मिला वहां उसी अनुपात में समाजी अमन, शान्ति व सलामती, बंधुत्व, न्याय, मानवाधिकार एवं बराबरी का बोलबाला रहा है। इससे सिद्ध होता है कि ज़माना चाहे जितना भी आगे बढ़ जाए, आपके ईशदूतत्व को निरस्त करके किसी नए ईशदूत के आने की ज़रूरत बिल्कुल नहीं है।
3. आप (सल्ल॰) को क़ुरआन में ईश्वर ने (मात्र अरबवासियों या मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि) ‘‘सारे संसारों के लिए साक्षात् दया व कृपा’’ की उपाधि दी (क़ुरआन– 21:107)।
4. आप (सल्ल॰) ने रंग, भाषा, वर्ण, वंश, जाति व राष्ट्रीयता आदि के आधार पर ‘श्रेष्ठ’ और ‘नीच’ की ‘‘जाहिलीयत’’ का समापन कर ‘‘मानवजाति के ऐक्य’’ (Oneness of Humankind) को स्थापित किया और टूटी हुई मानवजाति रूपी माला के बिखरे दानों को एकेश्वरवाद की लड़ी में पिरोया।
5. कोई ऐसी छोटी-बड़ी, जटिल नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक समस्या ऐसी नहीं जो आप (सल्ल॰) के समय में मौजूद रही हो (या आज 1400 वर्ष बाद भी विश्व में कहीं भी पाई जाती हो) और आपने उसका सफल समाधान न कर दिया हो। चरित्रहीनता, झूठ, बेईमानी, शराब, जुआ, चोरी, डकैती, रहज़नी, रिश्वत, गबन, अश्लीलता, अभद्रता, शोषण, नारी अपमान व शोषण, बालिका-वध (अब कन्या-भ्रूण-हत्या) आदि-उस तात्कालिक समाज में भी सबका उन्मूलन व दमन किया और आज भी आप (सल्ल॰) का आदर्श इस दिशा में सक्रिय व सक्षम सिद्ध हो रहा है। निष्पक्ष विद्वानों का मानना है कि वर्तमान युग की अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उद्घोषणा तथा युद्ध-आचारसंहिता और युद्धबन्दियों से संबंधित अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून आप (सल्ल॰) के ही आदर्श से लिए गए हैं।
ये मात्र थोड़े से तर्क, सिर्फ़ चन्द दलीलें हैं, जो आप (सल्ल॰) के अन्तिम (सार्वभौमिक व सार्वकालिक) ईशदूत होने की चलती-फिरती, साक्षात् दलीलें हैं। इनके अतिरिक्त आप पर अवतरित ईशग्रंथ ‘क़ुरआन’ के अन्तिम ईशग्रंथ होने के अनेक तर्क व प्रमाण ख़ुद क़ुरआन में और क़ुरआन के बाहर भी बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं।
क़ुरआन के पहले अध्याय (सूरह) की पहली आयत में अल्लाह को किसी जाति-विशेष का नहीं, सारे संसारों का पालनकर्ता (रब) कहा गया है। अन्तिम सूरह की पहली तीन आयतों में उसे सारे लोगों का रब, सारे लोगों का स्वामी (मालिक) और सारे लोगों का इष्ट पूज्य-उपास्य (इलाह) कहा गया है। अनेक आयतों में लोगों को ‘ऐ इन्सान’, ‘ऐ आदम की संतान’ और ‘हे लोगो’ कहकर संबोधित किया गया है। इस संबोधनशैली में काल, समय और स्थान (देश, राष्ट्र) की सीमाएं तोड़ दी गई हैं। क़ुरआन के नियमों, आदेशों और क़ानूनों पर आधारित ईश्वरीय व्यवस्था ने आज लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष बीत जाने पर भी ऐसी उत्कृष्ट व श्रेष्ठ नैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक एवं राजकीय व्यवस्था के नमूने पेश कर रखे हैं, जो इस तथ्य के तर्क व प्रमाण हैं कि अब इस ईशग्रंथ के अतिरिक्त किसी अन्य ईशग्रंथ की आवश्यकता कदापि नहीं है और यही स्थिति भविष्य के लिए भी है। इस प्रकार बिना किसी पूर्वाग्रह और नकारात्मक पक्षपात के देखा जाए तो क़ुरआन का अन्तिम ईशग्रंथ होना और इसके वाहक हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का अन्तिम ईशदूत होना बौद्धिक विश्लेषण और अक़्ली जायज़े से पुष्ट (Confirm) हो जाता है।
6. पिछले ईशदूतों के इतिहास पर समय और काल की धूल कुछ इतनी जमी हुई है और अज्ञानता, भ्रम एवं विरोधाभास की धुंध कुछ ऐसी छाई हुई है कि उनकी सम्पूर्ण जीवनी, उनकी शिक्षाएं, उनके कथनों व कर्मों का ब्योरा, उनका जीवन-आचरण, उनका चरित्र एवं आचार-व्यवहार, उनका मिशन और उनका आदर्शस्वरूप, शुद्धता, प्रामाणिकता व विश्वसनीयता के साथ उनके बाद के मानव-समाज को उपलब्ध न हो सका। या तो उन्हें सुरक्षित न रखा जा सका, या उनके बाद मानवीय हस्तक्षेपों ने उन्हें प्रदूषित, विकृत व परिवर्तित कर दिया, यहां तक कि उनके साथ ऐसी-ऐसी कहानियां, घटनाएं और मिथ्या-धारणाएं (Mythologies) जोड़ दी गईं जो किसी ईशदूत के लिए सर्वथा अनुचित थीं। उनका ऐसा चरित्र प्रस्तुत किया गया जो आगामी मानवजाति के लिए ‘आदर्श’ बन ही न सकता था।
उपरोक्त वस्तुस्थिति हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के संदर्भ में बिल्कुल भिन्न और उत्कृष्ट (Distinctly different) हो गई। आपका जन्म, आपकी पूरी जीवनी, आपका सम्पूर्ण जीवन-आचरण, आपका आह्वान, आपकी शिक्षाएं, आपका मिशन, ईश्वरीय मिशन में आपका संघर्ष, आपका चरित्र और आचार-व्यवहार, आपका व्यक्तिगत, दाम्पत्य, पारिवारिक व सामाजिक जीवन...यहां तक कि आपका बोलना, चुप रहना, मुस्कराना, हंसना, दुखी होना, क्षमा कर देना और बदला का औचित्य होने पर भी बदला न लेना, शान्ति व युद्ध की अवस्था में आपकी नीति व कार्यविधि, आपका सोना, चलना-फिरना, आपका लिबास व परिधान, आपका वुजू़ व स्नान करना, लोगों से दिन-प्रतिदिन के मामले निबटाना, लोगों के अधिकार देना और दिलाना, समाजसेवी, समाज-रचयिता, धर्म-गुरु, उपासक, उपदेशक, न्यायाधीश, शिक्षक-प्रशिक्षक, शासक-प्रशासक, योद्धा व कमांडर आदि की भूमिकाएं निभाना, ईश्वर की उपासना स्वयं करना और अपने अनुयायियों को ईशमान्य उपासना-पद्धति सिखाना तथा एक ईशपरायण समाज और सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था बनाना...अर्थात् आप (सल्ल॰) के सम्पूर्ण (Holistic) आदर्श (23 वर्षीय पैग़म्बरीय जीवन) का प्रारूपण व सृजन इतिहास की पूरी रोशनी में हुआ। इस आदर्श का एक-एक अंग, एक-एक पहलू और एक-एक सूक्षतम अंश आप (सल्ल॰) के जीवन-काल से ही बड़ी शुद्धता, सूक्षमता, प्रामाणिकता व विश्वसनीयता के साथ रिकार्ड किया जाता रहा। इसके लिए पूरा एक विज्ञान विकसित हुआ और एक वृहद, विशाल व विस्तृत ‘हदीसशास्त्र’ अस्तित्व में आया (हदीस=आप (सल्ल॰) की कथनी-करनी का लिखित व प्रमाणिक ब्योरा)। पहले पुस्तकों ने, फिर प्रिंट-मीडिया और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिर इन्टरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब (www) ने आप (सल्ल॰) के ईशदूतत्व को वैश्वीकृत (Globalised) और सार्वभौमिक व सार्वकालिक बना दिया।
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